एक तरफ़ा प्यार दिन का चैन,रात का सुकून कब तक यूं ही गंवाते हैं। आख़िर एक तरफ़ा प्यार कब तक हम ही क्यों निभाते हैं। खुद ही खुद को पाने का जंग हम कब तक यूं ही चलाते हैं। आख़िर कब तक अंधेरे में हम ही अपना जीवन क्यों बिताते हैं। थाम किसी गैर का दामन आप जीवन में आगे तो बढ़ गए। इंतजार में समय सारा आख़िर कब तक हम ही क्यों गंवाते हैं। तन्हाई का दर्द उठाएं लड़खड़ाते हुए हम यूं ही चलते हैं। तुझसे मिलने की गलतफहमियां आख़िर हम ही क्यों पालते हैं। टूट चुके हैं फिर भी तेरी सलामती की दुआ ही मांगते हैं। आख़िर ये एक तरफ़ा मोहब्बत सिर्फ हम ही क्यों निभाते हैं। #december #December #day21