White सबकूछ हैं मुझमें समा पर अंधा हैं ये जहा जिन्हे कूछ दिखता ही नहीं रुखी बिळगती हैं यह मिट्टी इस तरह माँ की चीखे कोई सूनता ही नहीं जी मचलता हैं बिना छाव के प्यास कोई बुझाता ही नहीं सिमेंट काँक्रिट की इस जमी पे पाणी कही घुलता ही नहीं माँ की चीखे कोई सूनता ही नहीं मैं हु वसुंधरा कण कण हैं मुझमे समा दोनो भी पलते हैं मुझमे हरियाली और सुखा बच्चे कब समझोगे जिम्मेदारी अपनी पलको तले आसू में छिप गई हरियाली धरती माँ की चीखे कोई सूनता ही नहीं 5th June.... Environment day it's high time to awaken ourselves & our society ©Jaymala Bharkade #EnvironmentDay2024