जब जब सुनती, मैं पति की गरज, जाने क्यूँ लगता उनको, हूँ मैं न समझ।। क्यों करते फ़िर, चाँद-तारो से तुलना मेरी, जान लो कुदरत का बना, मैं रूप हूँ अजब।। राखी जब बाँधती, भाई की कलाई पर, देता वो दिल से वचन, हूँ मैं तेरा कवच।। न समझो औरत को कमज़ोर साहिब, वो कैसे लाखों दर्द यूँही सहती है, नो माह पालकर बच्चा जब वो जनती है, असहाय पीड़ा सहती वो, कैसी ताक़त उसमें होती है।। पैदा हो गर बेटा तो, पति आलिशान दावते देता है। और बेटी होने पर मिठाई खिलाने में न, जाने क्यों रोता है।। लड़का-लड़की एक बराबर, भाषणो में सुनाई देता है, जूती की नोंक पर बैठाते पत्नी को,क्या यही इंसाफ होता है।। छोड़ा अंगना, छोड़ा बंगला, छोड़-छाड़ कर वो हर एक सपना, बाप का दिया उपनाम भी वहीं मैं छोड़ आई, डोली में बैठाकर तो घर ले आए तुम मुझे, फ़िर भी ससुराल में, बेटी मैं कभी न बन पाई।। अनगिनत अनकहे एहसास हूँ मैं, फ़िर भी यारो बिंदास हूँ मैं।। और तुम पूछते हो कौन हूँ मैं।। Kaun Ho Tum Part-5, ankahe ehsas, ek sach jo kahi na kahi samaj me ghatit ho raha hai. isse inkar nahi kiya ja skta.. #kaun_ho_tum #wajood #challenge #yqbaba #yqdidi #yqbhaijan #yqtales #yqquotes