बदले अल्पसंख्यक निर्धारण का पैमाना शीर्षक से लेख में आलेख में हरेंद्र प्रताप ने सुझाव दिया है कि अल्पसंख्यक और की पहचान अब राज्य है या जिला नहीं बल्कि इससे भी सूक्ष्म स्तर पर यानि प्रखंड सब डिवीजन और सरकारी स्तर पर की जानी चाहिए देश में अल्पसंख्यक कौन है इसका निर्धारण किस तरह किया जाए इसको लंबे समय से बहस चल रही है आरंभ में कांग्रेसी राजनीति पार्टियों की दृष्टि करण की नीति के चलते मुस्लिमों और ईसाइयों को पूरे देश की आबादी को पैमाना मानकर अल्पसंख्यक होने का सबसे ज्यादा फायदा दिया तत्कालिक सरकारों से मिली सहेलियों के चलते धीरे-धीरे देश के 9 राज्यों से 100 अधिक जिलों में इनकी संख्या हिंदुओं से अधिक हो गई है अब हिंदुओं की संख्या कम हो गई है यानी एक तरह से अल्पसंख्यक हो गए हैं लेकिन अल्पसंख्यक होने के चलते यदि फायदा नहीं मिल रहे हैं बल्कि उन क्षेत्रों में बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी को मिल रहा है इसके चलते रहने वाले हिंदुओं की स्थिति खराब होती जा रही है घटना सामने आती है उन्हें सुरक्षा की भावना बढ़ रही है उन्हें करने पर मजबूर होना पड़ रहा है और उनकी मदद करें तभी होगा जब क्षेत्रों में हिंदुओं के मिलेंगे जो सार्वजनिक तौर पर उपस्थित होते हैं ©Ek villain #अल्पसंख्यक वर्गों की पहचान में खामी #drowning