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।। विश्वगुरु अग्रसर भारत यात्रा में हिंदी ।। भारत

।। विश्वगुरु अग्रसर भारत यात्रा में हिंदी ।।
भारत की राजभाषा हिंदी । भारत के संस्कार की भाषा हिंदी, भारत के सभी जन की भाषा हिंदी, जन जन के मानस की भाषा हिंदी । आज 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर भारत में मनाया जाने वाला यह दिन पूरे विश्व पटल पर एकमात्र ऐसा दिन है जो किसी देश की राजभाषा के लिए मनाया जा रहा है । हिंदी संस्कार की भाषा है, हिंदी सम्मान की भाषा है, हिंदी हमारे स्वदेश की भाषा है । हिंदी का बढ़ता व्याप्त आज हम लोग देख रहे हैं कि 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के तौर पर मनाना भी 2006 से शुरू हुआ । यहां उपलब्धी है हिंदी भाषा की के आज विश्व में सबसे अधिक बोलने वाली तीसरी भाषा है । जिसके 80 करोड़ से भी ज्यादा हिंदी बोलने वाले लोग आज दुनिया में है । आज जब आजादी के 75 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं तब केंद्र सरकार भी हिंदी को वह सम्मान दिलाने के प्रयास में पिछले 75 वर्ष से कार्य कर रही है 1949 में संविधान समिति द्वारा हिंदी और अंग्रेजी को राजभाषा के तौर पर आज ही के 14 सितंबर के दिन प्रस्ताव पारित किया गया और बाद में 10 मई 1963 संसदीय समिति ने प्रस्ताव पारित किया कि भारत की राजभाषा हिंदी होगी और सहायक भाषा अंग्रेजी रहेगी परंतु आज जब हिंदी के बोलने वाले चाहने वाले इतने बढ़ रहे हैं इसके बावजूद एक दुर्भाग्य की बात यह है कि समाज के जनमानस में से बच्चों के शिक्षण में से और परवरिश के बीच में से हिंदी को निकालने में लगे हे राष्ट्र विरोधी तत्व मां को मॉम और पिता को डैड कर दिया है । जब पिता डैड हो जाएगी तब हिंदी भी डेड हो जाएगी और मां मॉम हो जाएगी तो हिंदी भी भारत जैसे राष्ट्र को मोम की तरह पिघल कर कुछ नहीं रहेगा । पिछले 75 सालों में हिंदी की बढ़ती उपलब्धियों के साथ देश विरोधी ताकते वैचारिक के युद्ध छेड़ दिया है वामपंथ के विचार धारा वाले लोग भारत की स्वाधीनता अखंडता को तोड़ने के लिए उसके विचार मानस पर हमला कर रहे हैं । देश को बांटने की सोच रखने वाले लोग हिंदी को नीच रूप से दिखा रहे हैं अंग्रेजी को क्लास लैंग्वेज बता बता कर सिनेमा  टेलीविजन के माध्यम से के वामपंथी विचारधारा के लोग एक वैचारिक युद्ध छोड़ रहे हैं । पर आज भी कुछ लोग, कुछ कलाकार, संगीतकार, लेखक कथाकार इन लोगों के लाखों प्रयास से हिंदी अभी तक साहित्य की भाषा तो बनी रही है । 500 सालों की गुलामी के बाद जब देश आजाद होता है सरकार और समाज के इतने प्रयत्न के बाद भी हिंदी का उतना विकास नहीं हुआ है । जबकि दूसरे दोस्त जैसे कि जापान जर्मनी रशिया इनसे सीख लेनी चाहिए दो-दो विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक रूप से टूट चुके इन देशों ने फिर से शुरुआत की ओर दुनिया से टक्कर लेने की ताकत जुटाई । उनके इस उपलब्धी में विज्ञान और टेक्नोलॉजी की विकास यात्रा का सबसे बड़ा योगदान रहा है और उसका एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि उनके प्राथमिक शिक्षण से लेकर उच्च रिसर्च यानी कि शोध कार्य में भी उनकी भाषा की प्राथमिकता उनकी मूल भाषा जर्मन,  रशियन या जापानी होती है । आज भी चीन जैसे देश से कोई टक्कर नहीं ले रहा आज सबसे ज्यादा रिसर्च पेटर्न्ड यानी कि शोध पंजीकरण पूरे विश्व में चाइना से होता है और वहां सब चाइनीस भाषा में ही पंजीकृत होता है । इन देशों से हमें सीख लेनी चाहिए कि हमारे रिसर्च पेपर यानी कि शोध पत्र हिंदी भाषा में हो और यह चीज जब हर विद्यार्थी समझने और अनुकरण में लाएगा तब भारत की विकास यात्रा विश्व पटल पर फिर से सुवर्ण अक्षर में अंकित होगी । आज मैं हर छात्र समुदाय को यह बताना चाहता हूं कि जिस दिन हम हमारे शोध पत्र हिंदी विषय बनाना शुरू करेंगे तब भारत उसका विश्वगुरु का स्थान लेगा और तब यह भारत की विकास यात्रा समग्र विश्व को फिर से एक दिशा में कार्य करने के लिए पथ सूचक बनाएगा । आप जब आजादी के 75 वर्ष और हिंदी दिवस के 75 वर्ष कि हो और बढ़ रही है तो  इस हिंदी दिवस पर संकल्प करें जिस तरह से साहित्य में रुचि रखने वाला विद्यार्थी उसका पहला विकल्प हिंदी लेता है, इस तरह से हर शोध का विद्यार्थी अपनी शोध पत्र के पंजीकरण हिंदी अपनी राजभाषा में ही करवाएं ।
- जयराजसिंह गोहिल 
  प्रांत कार्यालय मंत्री 
  अभाविप गुजरात

©Jayrajsinh Gohil हिन्दी दिवस निमित यह लेख "विश्वगुरु अग्रसर भारत यात्रा में हिंदी"
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।। विश्वगुरु अग्रसर भारत यात्रा में हिंदी ।।
भारत की राजभाषा हिंदी । भारत के संस्कार की भाषा हिंदी, भारत के सभी जन की भाषा हिंदी, जन जन के मानस की भाषा हिंदी । आज 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर भारत में मनाया जाने वाला यह दिन पूरे विश्व पटल पर एकमात्र ऐसा दिन है जो किसी देश की राजभाषा के लिए मनाया जा रहा है । हिंदी संस्कार की भाषा है, हिंदी सम्मान की भाषा है, हिंदी हमारे स्वदेश की भाषा है । हिंदी का बढ़ता व्याप्त आज हम लोग देख रहे हैं कि 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस के तौर पर मनाना भी 2006 से शुरू हुआ । यहां उपलब्धी है हिंदी भाषा की के आज विश्व में सबसे अधिक बोलने वाली तीसरी भाषा है । जिसके 80 करोड़ से भी ज्यादा हिंदी बोलने वाले लोग आज दुनिया में है । आज जब आजादी के 75 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं तब केंद्र सरकार भी हिंदी को वह सम्मान दिलाने के प्रयास में पिछले 75 वर्ष से कार्य कर रही है 1949 में संविधान समिति द्वारा हिंदी और अंग्रेजी को राजभाषा के तौर पर आज ही के 14 सितंबर के दिन प्रस्ताव पारित किया गया और बाद में 10 मई 1963 संसदीय समिति ने प्रस्ताव पारित किया कि भारत की राजभाषा हिंदी होगी और सहायक भाषा अंग्रेजी रहेगी परंतु आज जब हिंदी के बोलने वाले चाहने वाले इतने बढ़ रहे हैं इसके बावजूद एक दुर्भाग्य की बात यह है कि समाज के जनमानस में से बच्चों के शिक्षण में से और परवरिश के बीच में से हिंदी को निकालने में लगे हे राष्ट्र विरोधी तत्व मां को मॉम और पिता को डैड कर दिया है । जब पिता डैड हो जाएगी तब हिंदी भी डेड हो जाएगी और मां मॉम हो जाएगी तो हिंदी भी भारत जैसे राष्ट्र को मोम की तरह पिघल कर कुछ नहीं रहेगा । पिछले 75 सालों में हिंदी की बढ़ती उपलब्धियों के साथ देश विरोधी ताकते वैचारिक के युद्ध छेड़ दिया है वामपंथ के विचार धारा वाले लोग भारत की स्वाधीनता अखंडता को तोड़ने के लिए उसके विचार मानस पर हमला कर रहे हैं । देश को बांटने की सोच रखने वाले लोग हिंदी को नीच रूप से दिखा रहे हैं अंग्रेजी को क्लास लैंग्वेज बता बता कर सिनेमा  टेलीविजन के माध्यम से के वामपंथी विचारधारा के लोग एक वैचारिक युद्ध छोड़ रहे हैं । पर आज भी कुछ लोग, कुछ कलाकार, संगीतकार, लेखक कथाकार इन लोगों के लाखों प्रयास से हिंदी अभी तक साहित्य की भाषा तो बनी रही है । 500 सालों की गुलामी के बाद जब देश आजाद होता है सरकार और समाज के इतने प्रयत्न के बाद भी हिंदी का उतना विकास नहीं हुआ है । जबकि दूसरे दोस्त जैसे कि जापान जर्मनी रशिया इनसे सीख लेनी चाहिए दो-दो विश्वयुद्ध के बाद आर्थिक रूप से टूट चुके इन देशों ने फिर से शुरुआत की ओर दुनिया से टक्कर लेने की ताकत जुटाई । उनके इस उपलब्धी में विज्ञान और टेक्नोलॉजी की विकास यात्रा का सबसे बड़ा योगदान रहा है और उसका एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि उनके प्राथमिक शिक्षण से लेकर उच्च रिसर्च यानी कि शोध कार्य में भी उनकी भाषा की प्राथमिकता उनकी मूल भाषा जर्मन,  रशियन या जापानी होती है । आज भी चीन जैसे देश से कोई टक्कर नहीं ले रहा आज सबसे ज्यादा रिसर्च पेटर्न्ड यानी कि शोध पंजीकरण पूरे विश्व में चाइना से होता है और वहां सब चाइनीस भाषा में ही पंजीकृत होता है । इन देशों से हमें सीख लेनी चाहिए कि हमारे रिसर्च पेपर यानी कि शोध पत्र हिंदी भाषा में हो और यह चीज जब हर विद्यार्थी समझने और अनुकरण में लाएगा तब भारत की विकास यात्रा विश्व पटल पर फिर से सुवर्ण अक्षर में अंकित होगी । आज मैं हर छात्र समुदाय को यह बताना चाहता हूं कि जिस दिन हम हमारे शोध पत्र हिंदी विषय बनाना शुरू करेंगे तब भारत उसका विश्वगुरु का स्थान लेगा और तब यह भारत की विकास यात्रा समग्र विश्व को फिर से एक दिशा में कार्य करने के लिए पथ सूचक बनाएगा । आप जब आजादी के 75 वर्ष और हिंदी दिवस के 75 वर्ष कि हो और बढ़ रही है तो  इस हिंदी दिवस पर संकल्प करें जिस तरह से साहित्य में रुचि रखने वाला विद्यार्थी उसका पहला विकल्प हिंदी लेता है, इस तरह से हर शोध का विद्यार्थी अपनी शोध पत्र के पंजीकरण हिंदी अपनी राजभाषा में ही करवाएं ।
- जयराजसिंह गोहिल 
  प्रांत कार्यालय मंत्री 
  अभाविप गुजरात

©Jayrajsinh Gohil हिन्दी दिवस निमित यह लेख "विश्वगुरु अग्रसर भारत यात्रा में हिंदी"
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