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भर दो श्वास के...धड़कनें ठहर गई हैं, रख दो हाथ दिल

भर दो श्वास के...धड़कनें ठहर गई हैं,
रख दो हाथ दिल पे....मेरी रूह कहीं खो गई है।

मन कहता है जाओ पास उनके....और भर लो बाहों में,
बुद्धि रोक लेती है.... के बीमारी प्रेम के बीच आ खड़ी है।

बिकने लगी हैं अब सांसें....मानवता यहां मर गई है,
हो जाने दो मुझे ख़ाक यारों....के अब कोई आस बाकी नहीं है।

सत्ता के मद में चूर हैं ये सरकारें....न अदालतों को कुछ पड़ी है,
खुद ही संभालो घर को अपने.....के अब सूखी रोटी भी भली है।

- Akarsh Mishra

©Akarsh Mishra covid
भर दो श्वास के...धड़कनें ठहर गई हैं,
रख दो हाथ दिल पे....मेरी रूह कहीं खो गई है।

मन कहता है जाओ पास उनके....और भर लो बाहों में,
बुद्धि रोक लेती है.... के बीमारी प्रेम के बीच आ खड़ी है।

बिकने लगी हैं अब सांसें....मानवता यहां मर गई है,
हो जाने दो मुझे ख़ाक यारों....के अब कोई आस बाकी नहीं है।

सत्ता के मद में चूर हैं ये सरकारें....न अदालतों को कुछ पड़ी है,
खुद ही संभालो घर को अपने.....के अब सूखी रोटी भी भली है।

- Akarsh Mishra

©Akarsh Mishra covid

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