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सादगी का सुख अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होत

सादगी का सुख अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है जो उसके पतन का कारण बनता है सफलता की सीढ़ियां चढ़ते समय लोग अक्सर सहजता और सरलता को त्याग कर अहंकार के वशीभूत हो जाते हैं ऐसे में हमें सदैव सावधान रहना चाहिए कि अहंकार हमारे भीतर घर ही नहीं कर पाए अहंकार जीवन को असामान्य बना देता है यह हमें झूठ बोलना पसंद करना और नाटक करने के लिए वादे कर देता है कई अब गुणों से भर देता है जहां हमें कभी भी निश्चिंत नहीं रहने देता इससे मनुष्य के मन में हमेशा भाव और आशंकाओं के बादल उमड़ ते घूमते रहते हैं अगर इंसान राग लोग मन और मदद से दूर हो जाए तो उसे उन तमाम परेशानियों से सहज ही मुक्ति जो अनावश्यक रूप से उसके जीवन में आ गई है तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में भी कहा है जो इंसान राग लोग मन और मदद से दूर हो जाता है उसके लिए वैभव और विपदा में कोई भेद नहीं रह जाता फिर इंसान को फर्क नहीं पड़ता कि लंगोट धारण करने वाला एक फकीर है क्या सी आसन पर बैठने वाला एक राजा वैसे भी इस अहंकार से मनुष्य को सामान्य जीवन में नुकसान के सिवाय कुछ हासिल नहीं होता ऐसे में हमें सहजता सरलता और बिल निर्माता से भरा जीवन जीते हैं थे इनमें लेश मात्र भी अहंकार का भाव नहीं होता वह बहुत ही दयालु प्रवृत्ति के थे महात्मा भी श्रीराम के 15 पर ही चलते थे और अहंकार से दूर से जता की प्रतिमूर्ति थे अगर हम श्रीराम और गांधी जैसे इतिहास पुरुष का अनुसरण करें उनसे एंकर से दूर रहने का मंत्र से खा ले तो कुछ और हो ना हो कम से कम हमारा जीवन सहज सरल होकर सवरने तो हो जाएगा ही साथ ही में आडंबर युक्त परिवेश में भी नहीं जीना पड़ेगा और हमारा जीवन सुख से भर जाएगा यह सब संभव बना ना उतना कठिन भी नहीं है

©Ek villain #sadgi_pe_marta_hu 

#Love
सादगी का सुख अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है जो उसके पतन का कारण बनता है सफलता की सीढ़ियां चढ़ते समय लोग अक्सर सहजता और सरलता को त्याग कर अहंकार के वशीभूत हो जाते हैं ऐसे में हमें सदैव सावधान रहना चाहिए कि अहंकार हमारे भीतर घर ही नहीं कर पाए अहंकार जीवन को असामान्य बना देता है यह हमें झूठ बोलना पसंद करना और नाटक करने के लिए वादे कर देता है कई अब गुणों से भर देता है जहां हमें कभी भी निश्चिंत नहीं रहने देता इससे मनुष्य के मन में हमेशा भाव और आशंकाओं के बादल उमड़ ते घूमते रहते हैं अगर इंसान राग लोग मन और मदद से दूर हो जाए तो उसे उन तमाम परेशानियों से सहज ही मुक्ति जो अनावश्यक रूप से उसके जीवन में आ गई है तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में भी कहा है जो इंसान राग लोग मन और मदद से दूर हो जाता है उसके लिए वैभव और विपदा में कोई भेद नहीं रह जाता फिर इंसान को फर्क नहीं पड़ता कि लंगोट धारण करने वाला एक फकीर है क्या सी आसन पर बैठने वाला एक राजा वैसे भी इस अहंकार से मनुष्य को सामान्य जीवन में नुकसान के सिवाय कुछ हासिल नहीं होता ऐसे में हमें सहजता सरलता और बिल निर्माता से भरा जीवन जीते हैं थे इनमें लेश मात्र भी अहंकार का भाव नहीं होता वह बहुत ही दयालु प्रवृत्ति के थे महात्मा भी श्रीराम के 15 पर ही चलते थे और अहंकार से दूर से जता की प्रतिमूर्ति थे अगर हम श्रीराम और गांधी जैसे इतिहास पुरुष का अनुसरण करें उनसे एंकर से दूर रहने का मंत्र से खा ले तो कुछ और हो ना हो कम से कम हमारा जीवन सहज सरल होकर सवरने तो हो जाएगा ही साथ ही में आडंबर युक्त परिवेश में भी नहीं जीना पड़ेगा और हमारा जीवन सुख से भर जाएगा यह सब संभव बना ना उतना कठिन भी नहीं है

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