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"उसकी यादों के गुल आज फिर फिज़ा में बिखर गए!" महफ

"उसकी यादों के गुल आज फिर फिज़ा में बिखर गए!"

महफ़िल सजी दीवानों की इश्क की कई कलमें पढ़े गए 
बरसों सुप्त पड़ी यादों के पर्त दर पर्त खुलते गए
हम तो कलम के दीवाने हैं संजो रखे थे शायरी में 
खुली जो वरक गुलाब की खुशबू से तन मन महक गए

अम्बिका मल्लिक ✍️

©Ambika Mallik
  #फिज़ा