बाहर से देखो तो खुशियां इन दीयों में, अंदर से बुझ गए तो मर कर कब तक जीयोगे ? फुरसत हो खुद से जो केह देना इस दिल को तुम, जख्म जो छिल रहे तुम आखिर कब तक सियोगे ? ©Satyam Sarv मर–मर कर कब तक जीयोगे ?