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अकेले चलता रहा मजदुर की तरह मंजिल कब मिल गई पता

अकेले चलता रहा  मजदुर की  तरह 
मंजिल कब मिल गई पताभी नहीं चला

कोशिश बहुत की नीचे गिराने की
गिराता कैसा जमाना मुझ को 
जो  माँ की दुआओ का काफला चलता रहा

हसन मिर्ज़ा की कलम से ossam
अकेले चलता रहा  मजदुर की  तरह 
मंजिल कब मिल गई पताभी नहीं चला

कोशिश बहुत की नीचे गिराने की
गिराता कैसा जमाना मुझ को 
जो  माँ की दुआओ का काफला चलता रहा

हसन मिर्ज़ा की कलम से ossam
hasanmirza2546

Hasan Mirza

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