छिप गया "सत्य" का सूरज झूठ के अंधकार में आएगा लौट कर, थोड़ा मज़ा ले इस इंतज़ार में सत्य ओझल हो गया, इन आँखों से कुछ पल में क्यों कि "झूठ" का "पर्दा" छाया इन आँखों में सत्य वो आग जो धीरे हो सकती, पर बुझती नहीं "झूठ" कितना भी गहरा हो पर "छिपता" नहीं कुछ पल झूठ से जीता फ़िर पल पल मरता इंसान सत्य ख़ुदा का रूप, पापों से पार उतरता हैं इंसान उम्र नहीं लम्बी झूठ की, बढ़ा होता यह हैं पल में सत्य पर पर्दा नहीं किसी का जीता है यह शान में ♥️ Challenge-596 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।