तेरी महफ़िल में हम इसक़दर बदनाम हुए, औरों का क्या था पर तेरी ही नजरों में बेईमान हुए। और उन नज़रों का क्या जिन नज़रो से हमनें नज़रे मिलाने की कोशिश तक न की, आज उन्ही नज़रों की नजरों में हम तमाशा-ए-सरेआम हुए। -प्रशांत Unshared