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सुबह रंगीन, शामें ज़वां, रातें मदहोश कर जाती हैं, त

सुबह रंगीन, शामें ज़वां, रातें मदहोश कर जाती हैं,
तेरे हुस्न का ही कुछ ऐसा आलम है सनम, के
उभारों से नज़र हटती हैं, नाफ़ पे आके ठहर जाती है कि रात का खुमार मेरा अब तक उतरा नहीं,
तेरी जुस्तुज़ू में तन्हा जाग के जो गुजारी है।

एक खुराफात किसी खुराफाती के नाम।

बड़ा खुराफाती सा,
अंजान 'इकराश़'
सुबह रंगीन, शामें ज़वां, रातें मदहोश कर जाती हैं,
तेरे हुस्न का ही कुछ ऐसा आलम है सनम, के
उभारों से नज़र हटती हैं, नाफ़ पे आके ठहर जाती है कि रात का खुमार मेरा अब तक उतरा नहीं,
तेरी जुस्तुज़ू में तन्हा जाग के जो गुजारी है।

एक खुराफात किसी खुराफाती के नाम।

बड़ा खुराफाती सा,
अंजान 'इकराश़'