आह भरते जी रहे थे कुछ यूँ गलियों में तिमिर सी
कि आह भरते जी रहे थे कुछ यूँ गलियों में तिमिर सी
तुम वहां चमके किरण बन ग्रीष्म में शीतल पवन सी
तुम वहाँ चमके किरण बन ग्रीष्म में शीतल पवन सी
और ठहर गये हम वहीं पर बाट बीती हो सदी सी
तुमने तो सोचे होंगे भी नहीं वो बात करने के बहाने
आज़माते हम रहे जो समर्पण के तराने