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डाली डाली डोलते हों हम नहीं ऐसे सयाने! हम तो हैं म

डाली डाली डोलते हों हम नहीं ऐसे सयाने!
हम तो हैं माली वही जो, जीवित करे हर सूखता रिश्ता! 
तुम तो फिर भी आस्था हो, जन्मों की तुम कल्पना हो 
तुम कहो तुम्हें कैसे हार जाते, खुद को कैसे भूल पाते?  आह भरते जी रहे थे कुछ यूँ गलियों में तिमिर सी 
कि आह भरते जी रहे थे कुछ यूँ गलियों में तिमिर सी 
तुम वहां चमके किरण बन ग्रीष्म में शीतल पवन सी 
तुम वहाँ चमके किरण बन ग्रीष्म में शीतल पवन सी
और ठहर गये हम वहीं पर बाट बीती हो सदी सी 

तुमने तो सोचे होंगे भी नहीं वो बात करने के बहाने 
आज़माते हम रहे जो समर्पण के तराने
डाली डाली डोलते हों हम नहीं ऐसे सयाने!
हम तो हैं माली वही जो, जीवित करे हर सूखता रिश्ता! 
तुम तो फिर भी आस्था हो, जन्मों की तुम कल्पना हो 
तुम कहो तुम्हें कैसे हार जाते, खुद को कैसे भूल पाते?  आह भरते जी रहे थे कुछ यूँ गलियों में तिमिर सी 
कि आह भरते जी रहे थे कुछ यूँ गलियों में तिमिर सी 
तुम वहां चमके किरण बन ग्रीष्म में शीतल पवन सी 
तुम वहाँ चमके किरण बन ग्रीष्म में शीतल पवन सी
और ठहर गये हम वहीं पर बाट बीती हो सदी सी 

तुमने तो सोचे होंगे भी नहीं वो बात करने के बहाने 
आज़माते हम रहे जो समर्पण के तराने

आह भरते जी रहे थे कुछ यूँ गलियों में तिमिर सी कि आह भरते जी रहे थे कुछ यूँ गलियों में तिमिर सी तुम वहां चमके किरण बन ग्रीष्म में शीतल पवन सी तुम वहाँ चमके किरण बन ग्रीष्म में शीतल पवन सी और ठहर गये हम वहीं पर बाट बीती हो सदी सी तुमने तो सोचे होंगे भी नहीं वो बात करने के बहाने आज़माते हम रहे जो समर्पण के तराने