"कोई नदी के पार गाता" - गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर "भंग निशा की नीरवता पर इस देहाती गाने का स्वर ककड़ी के खेतों से उठ, आता जमुना पर लहराता कोई नदी के पार गाता। होंगे भाई बंधू निकट ही कभी सोचते होंगे यह भी इस तट पर भी बैठा कोई, उसकी तानो को सुन पाता कोई नदी के पार गाता। आज ना जाने क्यों होता मन सुनकर यह एकाकी गायन सदा इसे मैं सुनता रहता, सदा इसे यह गाता जाता, कोई नदी के पार गाता।। #ravindranathtagore #rabindranathtagore #tagore #tagorebirthday