शान्ति कैसी, छा रही, वातावरण में अजब उदासी तृप्ति कैसी रो रही, सारी धरा ही आज प्यासी ध्यान तक विश्राम का , पथ पर महान अनर्थ होगा ऋण न युग का दे सका तो , जन्म लेना व्यर्थ होगा। इसलिए ही आज युग की आग , अपने राग में भर- गीत नूतन गा रहा हूँ पर पर तुम्हें भूला नहीं हूँ। Suraj Chaubey #ध्यान तक #विश्राम का #पथ पर #महान अनर्थ होगा #ऋण न #युग का दे सका तो #जन्म लेना व्यर्थ होगा।