ये क्या हक़ीक़तें देख ली हैं कि ख़्वाब इन आँखों में अब कोई उतरता नहीं है देख लिए हैं इस क़दर शायद खिज़ा के मौसम दिल गुलों के किसी मंज़र से अब बहलता नहीं है 9/6/20