भटकते सालों बीत गए कोई तो राह बता दो अब तो चाहत है भगवान को जानने की , कोई तो मन्दिर बता दो , अब तो चाहत है खुशगवार जिंदगी की, कोई तो राह बता दो। थक गए चलते चलते कोई तो राह बता दो अब तो चाहत है ख्वाहिश ही मिटा दूं सारी , कोई तो रबड़ दिला दो, अब तो चाहत है एक जुड़ जाऊ किसी धागे से , कोई तो वो डोर दिखा दो । मन उलझनों में है कब से कोई तो राह बता दो जो विचलित न हो तूफानों से भी , कोई तो ऐसा धीर बता दो अब तो चाहत है कोई समझ मुझे भी , कोई तो ऐसा दिलगीर बता दो । स्वार्थ की पहचान हो सके जिससे कोई तो राह बता दो जो बांट सके खुशियों को लोगों में , कोई तो ऐसा अमीर बता दो आज ढूढ़ रही ख़ुद में ही किसी ख़ास को , कोई तो ऐसा तासीर बता दो । ©कवित्त कलश कोई तो बता दो