"ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद" मैं उसके लिए, ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद... अपना दर्द अब, किसी और से कह लेता है वो... सुना है,मेरे बिना भी, खुश रह लेता है वो... मेरे बिना वो तो पूरा है लेकिन, उसके बिना मैं अधूरा सा हूं शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद... मुझसे दूर जाने के, नए बहाने ढूंढने लगा है वो... मुझसे जी भर गया है शायद, नए ठिकाने ढूंढने लगा है वो... पहले नज़र से दूर किया उसने, अब दिल से भी, दूरी सी है शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद.... चाह कर भी उससे, ये कह नहीं पाता हूं... लौट के आ जाओ अब, तुम बिन, रह नहीं पाता हूं... उसे कैसे समझाऊं ये की, उससे मिलकर ही, पूरा सा हूं शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद.... अंकुर ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) "ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद" मैं उसके लिए, ग़ैर-जरूरी सा हूं शायद... हां, मैं अब एक, मजबूरी सा हूं शायद... अपना दर्द अब, किसी और से कह लेता है वो... सुना है,मेरे बिना भी, खुश रह लेता है वो...