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मैं डरती हूँ जब कोई पुरुष मेरा एक क़रीबी दोस्त बनत

मैं डरती हूँ
जब कोई पुरुष मेरा एक क़रीबी दोस्त बनता है... 

मुझे बहुत सोच समझ कर करना पड़ता है 
शब्दों का चयन... 

प्रेम का प्रदर्शन 
और भावों की उन्मुक्त अभिव्यक्ति 
सदैव मेरे चरित्र पर एक प्रश्न चिह्न लगाती है.... 

मेरी बेबाकियाँ मुझे चरित्रहीन के समकक्ष ले जाती हैं 
मेरी उन्मुक्त हँसी एक अनकहे आमन्त्रण का
पर्याय मानी जाती है... 

मैं अभिशप्त हूँ 
पुरूष की खुली सोच को स्वीकार करने के लिए 
और साथ ही विवश हूँ 
अपनी खुली सोच पर नियन्त्रण रखने के लिए.. 

मुझे शोभा देता है 
स्वादिष्ट भोजन पकाना 
और वह सारी जिम्मेदारियाँ  अकेले उठाना 
जिन्हें साझा किया जाना चाहिए... 

जब मैं इस दायरे के बाहर सोचती हूँ 
मैं कहीं खप नहीं पाती... 

स्त्री समाज भी मुझे जलन और हेय की 
मिली-जुली दृष्टि से देखता है... 
और पुरुष समाज 
मुझमें अपने अवसर तलाश करता है... 

मेरी सोच.. मेरी सम्वेदनाएँ... 
मेरी ही घुटन का सबब बनती हैं... 

मैं छटपटाती हूँ... 
क्या स्वयं की क़ैद से मुक्ति सम्भव है....???

©kavita Shukla #dartihuildki 
#darti_hun 

#dusk
मैं डरती हूँ
जब कोई पुरुष मेरा एक क़रीबी दोस्त बनता है... 

मुझे बहुत सोच समझ कर करना पड़ता है 
शब्दों का चयन... 

प्रेम का प्रदर्शन 
और भावों की उन्मुक्त अभिव्यक्ति 
सदैव मेरे चरित्र पर एक प्रश्न चिह्न लगाती है.... 

मेरी बेबाकियाँ मुझे चरित्रहीन के समकक्ष ले जाती हैं 
मेरी उन्मुक्त हँसी एक अनकहे आमन्त्रण का
पर्याय मानी जाती है... 

मैं अभिशप्त हूँ 
पुरूष की खुली सोच को स्वीकार करने के लिए 
और साथ ही विवश हूँ 
अपनी खुली सोच पर नियन्त्रण रखने के लिए.. 

मुझे शोभा देता है 
स्वादिष्ट भोजन पकाना 
और वह सारी जिम्मेदारियाँ  अकेले उठाना 
जिन्हें साझा किया जाना चाहिए... 

जब मैं इस दायरे के बाहर सोचती हूँ 
मैं कहीं खप नहीं पाती... 

स्त्री समाज भी मुझे जलन और हेय की 
मिली-जुली दृष्टि से देखता है... 
और पुरुष समाज 
मुझमें अपने अवसर तलाश करता है... 

मेरी सोच.. मेरी सम्वेदनाएँ... 
मेरी ही घुटन का सबब बनती हैं... 

मैं छटपटाती हूँ... 
क्या स्वयं की क़ैद से मुक्ति सम्भव है....???

©kavita Shukla #dartihuildki 
#darti_hun 

#dusk