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जिनकी कोई मंज़िल नही थी उन राहों पे चले हैं, बोहत स

जिनकी कोई मंज़िल नही थी उन राहों पे चले हैं,
बोहत से अपनों के लिऐ शाम का सूरज बन कर ढले हैं,
हम GAGGI को जानते हैं ये दावा मत करना दोस्त,
चाँद निकलने से ले के सूरज निकलने तक हर रात एक नई आग में जले हैं।
GAGGI #unknown
जिनकी कोई मंज़िल नही थी उन राहों पे चले हैं,
बोहत से अपनों के लिऐ शाम का सूरज बन कर ढले हैं,
हम GAGGI को जानते हैं ये दावा मत करना दोस्त,
चाँद निकलने से ले के सूरज निकलने तक हर रात एक नई आग में जले हैं।
GAGGI #unknown