मंजिल सैर करने में चला था ,दिल में कुछ अरमान थे एक तरफ नदी का किनारा ,एक तरफ श्मशान थी । शमशान पे चलते चलते ..,हड्डी पे पाव पड़े......!! हड्डी का यह बयान था है मुसाफिर सम्भल के चल । हम भी कभी इंसान थे... हम भी कभी इंसान थे।। मंजिल मुसाफिर की