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मंजिल सैर करने में चला था ,दिल में कुछ अरमान थे एक

मंजिल
सैर करने में चला था ,दिल में कुछ अरमान थे
एक तरफ नदी का किनारा ,एक तरफ श्मशान थी ।
शमशान पे चलते चलते ..,हड्डी पे पाव पड़े......!!
हड्डी का यह बयान था है मुसाफिर सम्भल के चल ।
हम भी कभी इंसान थे...
हम भी कभी इंसान थे।। मंजिल मुसाफिर की
मंजिल
सैर करने में चला था ,दिल में कुछ अरमान थे
एक तरफ नदी का किनारा ,एक तरफ श्मशान थी ।
शमशान पे चलते चलते ..,हड्डी पे पाव पड़े......!!
हड्डी का यह बयान था है मुसाफिर सम्भल के चल ।
हम भी कभी इंसान थे...
हम भी कभी इंसान थे।। मंजिल मुसाफिर की

मंजिल मुसाफिर की #Poetry