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लक्ष्मी के बढ़ते प्रकोप ने सरस्वती को (शिक्षा को)

लक्ष्मी के बढ़ते प्रकोप ने
सरस्वती को (शिक्षा को) भी
स्पर्घा की आग में झोंक दिया।
नम्बर महत्वपूर्ण हो गए,
बच्चा मशीन बन गया।
व्यक्तित्व गौण हो गया।
चार में से एक सही उत्तर
ढूंढ़ने की कोचिंग दिलाई जा रही है।
सवालों का जीवन से
जुड़ा होना जरूरी नहीं है।
इस पढ़ाई में उतरने के लिए भी
ऋण लेना पड़ता है,ब्याज देना पड़ता है !
खाएगा क्या?
इन सबके जो परिणाम सामने आ रहे हैं,
वे ही आर्थिक दुर्दशा के कारण हैं। 🌸💠💮🍁🌺😊💮🌸💠🌹
शिक्षा के उद्देश्य को बदलना ही
निराकरण का एकमात्र मार्ग है।
शिक्षा को रोजगार के साथ-साथ
व्यक्तित्व निर्माण से भी
आवश्यक रूप से जोड़ना होगा।
जहां सरस्वती का वास नहीं है,
वहां लक्ष्मी नहीं रह सकती – स्थायी भाव में।
लक्ष्मी के बढ़ते प्रकोप ने
सरस्वती को (शिक्षा को) भी
स्पर्घा की आग में झोंक दिया।
नम्बर महत्वपूर्ण हो गए,
बच्चा मशीन बन गया।
व्यक्तित्व गौण हो गया।
चार में से एक सही उत्तर
ढूंढ़ने की कोचिंग दिलाई जा रही है।
सवालों का जीवन से
जुड़ा होना जरूरी नहीं है।
इस पढ़ाई में उतरने के लिए भी
ऋण लेना पड़ता है,ब्याज देना पड़ता है !
खाएगा क्या?
इन सबके जो परिणाम सामने आ रहे हैं,
वे ही आर्थिक दुर्दशा के कारण हैं। 🌸💠💮🍁🌺😊💮🌸💠🌹
शिक्षा के उद्देश्य को बदलना ही
निराकरण का एकमात्र मार्ग है।
शिक्षा को रोजगार के साथ-साथ
व्यक्तित्व निर्माण से भी
आवश्यक रूप से जोड़ना होगा।
जहां सरस्वती का वास नहीं है,
वहां लक्ष्मी नहीं रह सकती – स्थायी भाव में।