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हां एक पेड़ मैंने भी लगाया था। क्यूंकि उस दिन मैंन

हां एक पेड़ मैंने भी लगाया था।
क्यूंकि उस दिन मैंने जामुन खाया था।
वो क्यारी हमारी तो थी। 
पर बिल्कुल भी प्यारी ना थी।
हमने बड़े ही मेहनत से उसे उपजाऊ बनाया था।
हड़प्पा सभ्यता की तरह हमने उसे खुदवाया था।
निकले थे कुछ सीमेंट के बोरे और कुछ सामान।
अचरज हुआ था सबको , नहीं थी ये बात आम।
ख़ैर...
बड़े ही नाजो से पाला उसे।
लकड़ी का सहारा दे संभाला उसे।
जब देखती हूं.. तो ऐसा लगता है झूम रहा हो
झुक झुक मेरी तरफ़ .. पैरों को मेरे चूम रहा हो।  #वो_जामुन_का_पेड़ #जामुन #मेरा _पेड़, #shalinimaurya
हां एक पेड़ मैंने भी लगाया था।
क्यूंकि उस दिन मैंने जामुन खाया था।
वो क्यारी हमारी तो थी। 
पर बिल्कुल भी प्यारी ना थी।
हमने बड़े ही मेहनत से उसे उपजाऊ बनाया था।
हड़प्पा सभ्यता की तरह हमने उसे खुदवाया था।
निकले थे कुछ सीमेंट के बोरे और कुछ सामान।
अचरज हुआ था सबको , नहीं थी ये बात आम।
ख़ैर...
बड़े ही नाजो से पाला उसे।
लकड़ी का सहारा दे संभाला उसे।
जब देखती हूं.. तो ऐसा लगता है झूम रहा हो
झुक झुक मेरी तरफ़ .. पैरों को मेरे चूम रहा हो।  #वो_जामुन_का_पेड़ #जामुन #मेरा _पेड़, #shalinimaurya