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एक रात ऐसी देखी जो घुप्प अंधेरों में छुपी चांदनी थ

एक रात ऐसी देखी जो
घुप्प अंधेरों में छुपी चांदनी थी
ना राहों का पता न मसाल थी हाथों में
चले जा रहे थे मुशाफिर अपने मगन में
किन्तु,कुछ दूर सुनसान राहों पर कुछ ऐसा हुआ
काली रात पे किसी साएं का पहरा हुआ
तेज़ हवा संग पायल की सुन झनकार
मन सबका भयभीत हुआ। "अचानक"
कुछ ऐसा हुआ जिससे लोग स्तब्ध रह गए
जाना था कहां और हम कहां आ गए
आगे हुआ क्या होगा पता नहीं
एक कविता के रूप में अपनी सोच 
है अपनी जुबानी।। नमस्कार लेखकों🌸

आजे के #RzGeDiMoH_19 में अपनी डरावनी कविता लिखिये। :) 

उम्दा लेखनों को हमारे द्वारा इंस्टाग्राम पर दर्शाया जायेगा! (लिंक बायो में उपलब्ध है😍) 

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एक रात ऐसी देखी जो
घुप्प अंधेरों में छुपी चांदनी थी
ना राहों का पता न मसाल थी हाथों में
चले जा रहे थे मुशाफिर अपने मगन में
किन्तु,कुछ दूर सुनसान राहों पर कुछ ऐसा हुआ
काली रात पे किसी साएं का पहरा हुआ
तेज़ हवा संग पायल की सुन झनकार
मन सबका भयभीत हुआ। "अचानक"
कुछ ऐसा हुआ जिससे लोग स्तब्ध रह गए
जाना था कहां और हम कहां आ गए
आगे हुआ क्या होगा पता नहीं
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