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ककड़ी तरबूजों के खेतों में हम छुप कर सेंध लगाते थे

ककड़ी तरबूजों के खेतों में हम छुप कर सेंध लगाते थे ।
खट्टी मीठी अमियां बेख़ौफ़ तोड़ कर लाते थे ।
रखवाली करने बाले जब हमें पकड़ने आते थे ।
दिखा अंगूठा हम भगते पर हाथ न उनके आते थे ।
रोज शाम सोने से पहले बडी शिकायत होती थी ।
फिर अपनी सेवा भी ढंग से घर डंडे से होती थी ।
 गर्मियों की यादें.....☺😊
ककड़ी तरबूजों के खेतों में हम छुप कर सेंध लगाते थे ।
खट्टी मीठी अमियां बेख़ौफ़ तोड़ कर लाते थे ।
रखवाली करने बाले जब हमें पकड़ने आते थे ।
दिखा अंगूठा हम भगते पर हाथ न उनके आते थे ।
रोज शाम सोने से पहले बडी शिकायत होती थी ।
फिर अपनी सेवा भी ढंग से घर डंडे से होती थी ।
 गर्मियों की यादें.....☺😊