ककड़ी तरबूजों के खेतों में हम छुप कर सेंध लगाते थे । खट्टी मीठी अमियां बेख़ौफ़ तोड़ कर लाते थे । रखवाली करने बाले जब हमें पकड़ने आते थे । दिखा अंगूठा हम भगते पर हाथ न उनके आते थे । रोज शाम सोने से पहले बडी शिकायत होती थी । फिर अपनी सेवा भी ढंग से घर डंडे से होती थी । गर्मियों की यादें.....☺😊