पहले रहती थी एक अल्हड़ता पहले रहती थी एकनिश्चिंतता पहले रहता था मन ओत प्रोत उज्जवल भविष्य के सपने उन्नत होने के झिलमिलाते नज़ारे दिखने लगते थे सामने और अब.... अदभुत वितृष्णा और विरक्ति खोखली यह खनखनाहट सूनी है धमक, गायब है चमक अंतर्लोक पड़ा विक्षुब्ध और मन पूरी तरह संत्रस्त। बस एक विवाह ने सब कुछ बदल डाला है ज़िम्मेदारियों का एक टोकरा सदा के लिए सर पर रखा है । ३९१/३६६ बारहवीं पढ़ने वाले एक युवक की जबरन शादी करा दी गई। अब वह परेशान है। विवाह आवश्यक है। अनिवार्य नहीं। ये मेरे शब्द हैं, सबका अनुभव समान नहीं। original yreeta-lakra-9mba