आज भी याद है "वो बरगद" जमती थी यारों की महफ़िल! जेठ की दुपहरी में, सुलझा लेते थे वो झगड़े जो दायर होते थे अपनी कचहरी में। वो ताश के पत्ते वो उर्दू, मजलिस पर आपकी फ़रमाइश पर बजते फिल्मी गीत! भुलाए नहीं भूलते बरगद पर चढ़ना नँगें पाँव ! Ac को मात देती, उसकी शीतल छाँव। साथ में तालाब किनारा एक और पसंदीदा हमारा। गुम हो गई हैं जो अतीत के गर्त में तलाश है उन खुशियों की! वो बरगद जमती थी यारों की महफ़िल! जेठ की दुपहरी में, सुलझा लेते थे वो झगड़े जो दायर होते थे अपनी कचहरी में। वो ताश के पत्ते