सुनो अब कोई नही जानता तुम्हे, ये शहर भी बदल गया है और हम भी,, न इसे फर्क पड़ता है तुम्हारे होने या न होने से..! न हमे फर्क पड़ता है, ...*@! सुना है शहर में हो तुम, ढूंढ रहे हो निशान अपने हर जग़ह, बैठ कर पुरानी जगहों पर ढूंढ रहे हो वही मुस्कानों को, सुना है हक जाता रहे तुम भी इस शहर पर अपना, भूल गए क्या ये शहर अब तुम्हरा नही, न मोह्हबत है तुमसे इसे अब, न ही तुमको मोह्हबत थी कभी,