एक तो कलुआ की माई की बीमारी मार गई।। सेठ जी का कर्ज सारी कमाई मार गई। अधमरे जिन्दगी को, कोरोना माहमारी मार गई। बांकी जो बचा था, फंदे लगाकर महंगाई मार गई।। जीना भी मजबूरी है जनाब, जी लेने दीजिए। मरना तो कल भी है, भूख, प्यास से ही सही मरने दीजिए। अघोरी मरा, मरा कलेसरा, मर गया विसुनिया खानदान। छोड़िए ना जनाब क्या फर्क पड़ता है। मरने दीजिए, हैं आखिर गरीब ही न परेशान।। ✍-राजेन्द्र कुमार रत्नेश रामविशनपुर ,राघोपुर सुपौल (बिहार ) ©Rajendra Kumar Ratnesh #ग़रीबी में.... कोरोना वायरस से जुड़े मेरे अल्फाज