सोचता हूँ अक्सर... की हर लब पे जो सजा है ये तब्बसुम , छुपे हैं उसमे न जाने कितने किस्से.... न जाने दिन के उजाले हुए किसको मय्यसर रात की स्याही रही किसके हिस्से। Musings - 10/6/18