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पल्लव की डायरी पागलपन खुद करके अब डूब रहे है मिले

पल्लव की डायरी
पागलपन खुद करके अब डूब रहे है
मिले बड़े पैकेजों से,ऊभ रहे है
बसा के शहरो की शान
सकूँन ढूढने जंगलों और गाँवो में लौट रहे है
स्टेटसो में फँसाकर जान
अपनेपन का ख्वाव खो रहे है
जिंदा दिली ना हो जब तक
तन्हाइयां दम तोड़ देती है
अलगाव के लिये नही है जिंदगी
सब के चेहरों पर खिला सको खुशियाँ
इसी सब्र से चलती है दुनियाँ
                                       प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  #Sawera इसी सब्र से चलती है दुनियाँ
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