चुपके से रात आती है,सोए दर्द जगाती है तन्हाई की धुन बजती है,पानी में आग लगाती है वही गलती फिर मैं करता हूं,यादों के चेहरे पढ़ता हूं रात की दहलीज़ पर पलकें बिछाकर इंतज़ार सुबह का करता हूं नींद से नहीं कोई शिकवा है,पुरानी बातें हमें जगाती हैं बिस्तर बुलाता रहता है,रात कुर्सी पे गुज़र जाती है जिसने हमको ये रोग दिया,उसने जाने क्या सोच लिया पहले चोट लगी फिर दर्द बढ़ा फिर ख़ुद को उसने रोक लिया कुछ बूँदें आँखों से छलकती हैं,कुछ बिन बरसे रह जाती हैं संग वक्त के कुछ जख़्म भर जाते हैं,कुछ लकीरें दिल पे रह जाती है सूरज भी रोज़ निकल रहा है,ज़िदंगी भी रोज़ आज़माती है दिमाग दिन के संग चलता है,रात दिल का साथ निभाती है... © abhishek trehan #रात #दर्द #गलतियाँ #manawoawaratha #yqdidi #yqaestheticthoughts #yqrestzone #yqhindi