हर एक यही सोचता है, सत्रह, अठारह की उम्र में, पचास तक आने के बाद, अक्सर किसी न किसी भीड़ का हिस्सा, बना पाता है खुद को। पर क्या फरक पड़ता है दोस्तों, हिस्सा हों या न हों, अपनों के साथ जीकर, किसी का सहारा बनकर, किसी का प्यार पाकर, किसी पर प्यार लुटाकर, जी लिये तो समझना, खुशहाल ज़िन्दगी मिली ।। भीड़ नहीं बनना है मुझको भेड़ नहीं बनना है मुझको भीड़ के हाथों नहीं सौंपना है ख़ुद को #भीड़नहींबनना #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi