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" निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु लक्ष्मीः

" निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु

लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।

अद्यैव वा मरणमस्तु युगान्तरे वा

न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीरा।।"

👉👉 हिन्दी काव्यानुवाद

" चाहे नय-निपुण पुरुष निन्दा
या स्तुति में करें व्यतीत समय ।
लक्ष्मी निकेत में वास करें
या स्वेच्छा से दें छोड़ निलय।।
आज ही निधन हो जाय चट,
अथवा हो युग के बाद निधन।
रहते हैं अडिग न्याय पथ पर,
सर्वदा थैर्यव्रतधारी जन।।"

बनारसी "दास" कृत "काव्यकिञ्जल्क काव्य"

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©Ramkinkar sharma
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