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दे स्वयं का चंद स्नेह नादान परिन्दों को मिल गई दो

दे स्वयं का चंद स्नेह नादान परिन्दों को मिल गई दो पल की खुशी मेरे इस दिल को,

 गमों के काले मेघ बन घटा उनके जीवन मे बरसते हैं,बेबस तरसते हैं प्यार पाने को,

मानवता अब निस्सार हो चुकी हैं, वक्त हैं अब अपनी आंतरिक इंसानियत जगाने को,

सृष्टि का सार सभी जीव जगत हैं इनका हृदयस्पन्दन करता क्रिन्दन सम्मान पाने को,

सब मे प्रकृति मोह समाप्त हो रहा,एक अचेतन सूक्ष्म बीज अकुला रहा बाहर आने को,

 मिलता न कोई सहारा इन गुमनाम राहों में भटके हैं राही बेज़ार हो मंजिल  को पाने ,

आज मन ने ठान लिया करनी हैं पहल एक नायाब राह की सबको दो पल की खुशी देने को,

न कोई तरसे,न कोई भटके ,न अकुलाहट हो ,करना है सार्थक इस जीवन के पाने को।
 👉 ये हमारे द्वारा आयोजित प्रतियोगिता संख्या - 5 है..!

👉 आप सब को दिए गए शीर्षक के साथ Collab करना है., आप अपनी रचनाओं को आठ पंक्तियों  (8) में लिखें..!

👉Collab करने के बाद comment box में Done जरूर लिखें..!

👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!
दे स्वयं का चंद स्नेह नादान परिन्दों को मिल गई दो पल की खुशी मेरे इस दिल को,

 गमों के काले मेघ बन घटा उनके जीवन मे बरसते हैं,बेबस तरसते हैं प्यार पाने को,

मानवता अब निस्सार हो चुकी हैं, वक्त हैं अब अपनी आंतरिक इंसानियत जगाने को,

सृष्टि का सार सभी जीव जगत हैं इनका हृदयस्पन्दन करता क्रिन्दन सम्मान पाने को,

सब मे प्रकृति मोह समाप्त हो रहा,एक अचेतन सूक्ष्म बीज अकुला रहा बाहर आने को,

 मिलता न कोई सहारा इन गुमनाम राहों में भटके हैं राही बेज़ार हो मंजिल  को पाने ,

आज मन ने ठान लिया करनी हैं पहल एक नायाब राह की सबको दो पल की खुशी देने को,

न कोई तरसे,न कोई भटके ,न अकुलाहट हो ,करना है सार्थक इस जीवन के पाने को।
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👉 प्रतियोगिता में भाग लेने की समय सीमा कल सुबह 11 बजे तक की है..!