महीना खत्म होने वाला है किस्तें फिर मेरे बैंक के खाते से टकराएंगी घर अपना है पर अपना नहीं है कार जो नीचे खड़ी है परायी सी है किस्तें कुतर रही हैं तनख्वाह को मेरी ख्वाहिशों की चादर के सूराख दिखने लगे हैं कौन कहता है वक्त मरता नहीं हमने सालों को खत्म होते देखा दिसंबर में... -मिथिलेश बारिया ©VED PRAKASH 73 #गोल_चबूतरा