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एक सुबह वह एक सुबह कुछ ऐसी थी , ठण्डी हवा नदी क

एक सुबह 

वह एक सुबह कुछ ऐसी थी , 
ठण्डी हवा नदी के जैसी बहती थी। 
उस दिन गर्मी से राहत थी, 
छत पर रहने की चाहत थी। 

उस मस्त हवा के अनुभव से, 
कुछ नींद अभी तक बाकी थी। 
ऐसा लगता था जैसे गर्मी की, 
किसी और शहर में दावत थी। 

उस दिन गर्मी से राहत थी, 
छत पर रहने की चाहत थी।

               स्वेच्छा पाण्डेय #एकसुबह
#मेरीपहलीकविता
एक सुबह 

वह एक सुबह कुछ ऐसी थी , 
ठण्डी हवा नदी के जैसी बहती थी। 
उस दिन गर्मी से राहत थी, 
छत पर रहने की चाहत थी। 

उस मस्त हवा के अनुभव से, 
कुछ नींद अभी तक बाकी थी। 
ऐसा लगता था जैसे गर्मी की, 
किसी और शहर में दावत थी। 

उस दिन गर्मी से राहत थी, 
छत पर रहने की चाहत थी।

               स्वेच्छा पाण्डेय #एकसुबह
#मेरीपहलीकविता