मैं भी प्यारे-प्यारे बच्चों की माँ हूँ, मगर आज भी जब घर जाती हूँ माँ की ममता के छाँव तले, मानो दस-बारह साल वाली बच्ची बन जाती हूँ। माँ! आगे-पीछे घूमती रहेंगी दिनभर, जैसे नासमझ बच्ची हूँ, मैं बोलूँ कि माँ ! परेशान न हुआ कर मैं कौनसा बच्ची हूँ। हँस के बोलेगी है कि मेरे लिए तो, सदा तू वही छोटी बच्ची है, नासमझ, नादान, नींदों में खिलाया करती, तू नींद की बड़ी कच्ची है। मेरी हर चीज़ आज भी वैसे ही करती है, जैसे बचपन से करती आई, चाय से लेकर खाने तक का ख़याल, पानी भी पीने जाऊँ तो बोलेंगी, तू बैठी रह मैं लाई। मैं भी प्यारे-प्यारे बच्चों की माँ हूँ, मगर आज भी जब घर जाती हूँ माँ की ममता के छाँव तले, मानो दस-बारह साल वाली बच्ची बन जाती हूँ। माँ! आगे-पीछे घूमती रहेंगी दिनभर, जैसे नासमझ बच्ची हूँ,