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Autumn मन की उलझन हो या उखड़ी सांसे मैं संभाल लेत

Autumn मन की उलझन हो या उखड़ी सांसे 
मैं संभाल लेता था
लोगों का चले जाना हो या मेरा बचे रह जाना 
मैं सह लेता था 
जो असहनीय होता था
मैं उसे सहनशील बनाता था 
फिर भी एक हिस्सा खाली रहा मेरा 
जो नहीं होता था 
सब वहीं होता था 

उसके होने को कभी नही रोक पाया  मैं।

©Aditya kumar prasad
  मेरे अनकहे अल्फाज़

मेरे अनकहे अल्फाज़ #hunarbaaz

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