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मुकर गए वो बात से हर बार की तरह। खड़े हैं चाहतों क

मुकर गए वो बात से हर बार की तरह।
खड़े हैं चाहतों के बीच वो दीवार की तरह।।

उठ गए यकीन उनके ईमान से यारों।
बिक रहे हैं किरदार जो अखबार की तरह।।

Mukar Gye Wo Bat Se Har Bar Ki Trah
Khare Hain Chahton ke Bich Wo Diwar Ki Trah

Uth Gye Ykin Unke Iman Se Yaron
Bik Rhe hain Kirdar Jo Akhbar Ki Trah Adnan Rabbani's Shayari • #मुकर गए वो #बात से हर बार की #तरह।

#खड़े हैं #चाहतों के बीच वो #दीवार की तरह।।

उठ गए यकीन #उनके #ईमान से यारों।

बिक रहे हैं किरदार जो #अखबार की तरह।।
मुकर गए वो बात से हर बार की तरह।
खड़े हैं चाहतों के बीच वो दीवार की तरह।।

उठ गए यकीन उनके ईमान से यारों।
बिक रहे हैं किरदार जो अखबार की तरह।।

Mukar Gye Wo Bat Se Har Bar Ki Trah
Khare Hain Chahton ke Bich Wo Diwar Ki Trah

Uth Gye Ykin Unke Iman Se Yaron
Bik Rhe hain Kirdar Jo Akhbar Ki Trah Adnan Rabbani's Shayari • #मुकर गए वो #बात से हर बार की #तरह।

#खड़े हैं #चाहतों के बीच वो #दीवार की तरह।।

उठ गए यकीन #उनके #ईमान से यारों।

बिक रहे हैं किरदार जो #अखबार की तरह।।

Adnan Rabbani's Shayari • #मुकर गए वो #बात से हर बार की तरह। #खड़े हैं #चाहतों के बीच वो #दीवार की तरह।। उठ गए यकीन #उनके #ईमान से यारों। बिक रहे हैं किरदार जो #अखबार की तरह।। #godi_media