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बंजारा कहते हैं लोग मुझे मुझसे ही मेरा घर छीनकर-छी

बंजारा कहते हैं लोग मुझे
मुझसे ही मेरा घर छीनकर-छीनकर 
फिर बनेगा घर मेरा, आ रही होगी मेरी बूढ़ी मां
जंगल से लकड़ियां बीनकर-बीनकर 
फिर से काम में लग जाती थी हारी थकी मां
पसीना पौंछकर-पसीना पौंछकर
बोली चिंता मत कर बेटा आंसू पौंछकर
बना दूंगी महलों से सुंदर घर तेरा 
लकड़ी के टुकड़े तीनकर-तीनकर 
लाइटें नहीं होंगी यहां, जुगनू करेंगे रोशन घर मेरा
चारों तरफ घूमकर-घूमकर
अच्छा-अच्छा खाना खिलाकर कर दिया मुझको बड़ा
उनकी बुढ़ापे की लाठी और दुश्मन के आगे भी हो जाऊं खड़ा
फाटक नहीं लगाया मां ने द्वार पर
कोई भूखा- प्यासा न लौटे, शहर के बंद दरवाजे देखकर-देखकर
चोट लगती थी मेरे और चिल्लाती थी मां
मेरी एक आवाज पर दौड़ी-दौड़ी आती थी मां
अब जरूरत मेरी मां को मेरी
न जाऊंगा किसी के भरोसे छोड़कर-छोड़कर।

©Santosh Narwar Aligarh
  MAA#poetry#nojoto
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