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छुआछूत व जाति प्रथा सामाजिक बुराईयां है जो हमारे स

 छुआछूत व जाति प्रथा सामाजिक बुराईयां है जो हमारे समाज में प्राचीन  काल से मौजूद एक काला धब्बा है ! 
हमारे प्यारे हिमाचल के गांवों का भ्रमण करने पर पता चलता है कि लोग बहुत हैं जो भात की टोकरी सिर पर उठाए मस्ती में चले जा रहे हैं।निम्न जातीय लोगों द्वारा देवताओं को स्पर्श करने,मन्दिरों में जाने का अधिकार देव समाज नहीं देता,खाना एक साथ नहीं खिलाया जाता , अलग बर्तनों में खाना परोसा जाता है आंगन तक में नहीं आने दिया जाता, मकान-दुकान किराए पर देना हो तो जाति पूछी जाती है । अनेकों  तरह के भेदभाव किए जाते है । जब प्रकृति व ईश्वर कोई भेदभाव नहीं करते तो भला मामूली इन्सान क्यों ? पत्ते , कलियाँ , फूल स्पर्श से मूर्झाते क्यों नहीं ? नदियां ,नाले, झरने सूखते क्यों नहीं ?
ईश्वर की बनाई निम्न जातीय लोगों द्वारा मूर्तिया व दीये हर कोई खरीदता है किंतु जब वही मूर्तियां व दीये मन्दिरों में रखे जाते हैं तो उन्हीं मूर्तिकारों के छूने से वे अपवित्र माने जाते हैं । वाह कैसी रीत है हमारे समाज की 👏👏👏
संविधान में भले ही हमारे देश को पूर्णतः छुआछूत से मुक्त घोषित किया जा चुका हो,परंतु क्या वास्तव में छुआछूत की समाप्ति हो चुकी है ? 
समाज में यह बीमारी अब भी मौजूद है। जरूरत है तू इसे ख़त्म करने की तभी देश का विकास संभव है । 

सत्य घटना पर आधारित एक कहानी ........
नाम एवं स्थान काल्पनिक है ।
 छुआछूत व जाति प्रथा सामाजिक बुराईयां है जो हमारे समाज में प्राचीन  काल से मौजूद एक काला धब्बा है ! 
हमारे प्यारे हिमाचल के गांवों का भ्रमण करने पर पता चलता है कि लोग बहुत हैं जो भात की टोकरी सिर पर उठाए मस्ती में चले जा रहे हैं।निम्न जातीय लोगों द्वारा देवताओं को स्पर्श करने,मन्दिरों में जाने का अधिकार देव समाज नहीं देता,खाना एक साथ नहीं खिलाया जाता , अलग बर्तनों में खाना परोसा जाता है आंगन तक में नहीं आने दिया जाता, मकान-दुकान किराए पर देना हो तो जाति पूछी जाती है । अनेकों  तरह के भेदभाव किए जाते है । जब प्रकृति व ईश्वर कोई भेदभाव नहीं करते तो भला मामूली इन्सान क्यों ? पत्ते , कलियाँ , फूल स्पर्श से मूर्झाते क्यों नहीं ? नदियां ,नाले, झरने सूखते क्यों नहीं ?
ईश्वर की बनाई निम्न जातीय लोगों द्वारा मूर्तिया व दीये हर कोई खरीदता है किंतु जब वही मूर्तियां व दीये मन्दिरों में रखे जाते हैं तो उन्हीं मूर्तिकारों के छूने से वे अपवित्र माने जाते हैं । वाह कैसी रीत है हमारे समाज की 👏👏👏
संविधान में भले ही हमारे देश को पूर्णतः छुआछूत से मुक्त घोषित किया जा चुका हो,परंतु क्या वास्तव में छुआछूत की समाप्ति हो चुकी है ? 
समाज में यह बीमारी अब भी मौजूद है। जरूरत है तू इसे ख़त्म करने की तभी देश का विकास संभव है । 

सत्य घटना पर आधारित एक कहानी ........
नाम एवं स्थान काल्पनिक है ।