कवि के पेट में नही खून में कूदते हैं चूहे जैसे मन का दर्पण आगे देखने ही नहीं देता प्रतिबिम्ब दिखाता रहता है जिससे उबाल बढ़ता है कूदने लगते हैं चूहे भाव प्रधानता में तीव्र सहजता से भांपना जो चुभती है कलम की नोख बन कर वो जानता है कवि सधेगा तो कविता सधेगी! कवि के पेट में नहीं खून में कूदते हैं चूहे #मै_कविता #कोईमुश्किलनहीं #प्रतिस्पर्धा #yqdidi #YourQuoteAndMine