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चुपके-चुपके तन्हा-तन्हा, लम्हा-लम्हा बीता है..! र

चुपके-चुपके तन्हा-तन्हा,
लम्हा-लम्हा बीता है..!

रोते-रोते ख़ुद ही चुप,
होना हमने सीखा है..!

मीठा-मीठा बन कर हमने,
व्यवहार लोगों का तीखा देखा है..!

बदल-बदल कर किरदार यूँ अपना,
बदलता देखा सभी का सलीका है..!

अच्छा-सच्चा बन के देखा,
बुरे को अच्छा हमने लिखा है..!

ख़ुद बने हम जैसे लोगों में,
वैसा अक्ष हमें फिर दिखा है..!

©SHIVA KANT
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