ज़िन्दगी किसी कहानी के अधूरे भाग सी लगी है, उनसे जुदा होकर यादों को आग सी लगी है। लोंग , इलाइची , अदरक सब कुछ तो है डाला मगर अकेले बैठ कर पी चाय बेस्वाद सी लगी है। आँखो पे पट्टी बंधी थी इश्क़ की जब खाई ठोकर तो महोब्बत किसी भृष्टाचारी भिगाग सी लगी है। मुझसे अब उनकी दूरी की बस यही वजह है उन्हें प्यार महोब्बत बदनामी के दाग सी लगी है। कल तक तो मैं उनकी अपनी थी आज अचानक मुझसे उन्हें दुश्मनों वाली लाग सी लगी है । किसी ओर के हाथों में खेलती देखी उसकी जुल्फे सच बताऊ तो ज़हरीले शेषनाग सी लगी है।