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ना मोहबत्त मुकमल हुई। ना ख्वाइश ए मुकमल हुई। दर

ना मोहबत्त मुकमल हुई। 
ना ख्वाइश ए मुकमल हुई। 
दर दर की बेरुखी पाकर। 
जिंदगी भी बेरंग सी हुई। 
फिरते है आवारा ब्यार बनकर। 
कि कोई बुलावा हमारा भी आयेगा। 
इसी उमीद को लिए आरसो से। 
मेरी जिंदगी तन्हा बेरंग सी हुई।

©Sabeena
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Sabeena

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