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अफ़सोस है कि क़िस्मत की लकीरों में हमारा साथ नहीं,

अफ़सोस है कि क़िस्मत की 
लकीरों में हमारा साथ नहीं, पर 
एक नादान सी इल्तिजा हमेशा 
करती हूँ अपने ख़ुदा से, कि मुझपर 
उनका इतना उपकार हो..कि सिर्फ़ 
एक बार, फ़क़त एक बार तुम्हारे गले 
लगकर, तुम्हें महसूस कर अपने क़रीब, 
कहना चाहती हूं.. तुमसे जो राब्ता है 
वो किसी और से नहीं..खिंचाव नहीं.. 
बे-इंतिहा मोहब्बत है तुमसे.. 

(कैप्शन में पढ़े) याद है तुम्हें? मैं हमेशा ज़िद्द किया करती थी कि मुझे तुम्हें देखना है। जहाँ भी हो, जैसे भी हो,अपनी सेल्फी भेजो, कहा करती थी न! और तुम हो कि बड़े नखरे किया करते थे!! कहते थे, शकल तो वही है ना! प्लास्टिक सर्जरी थोड़ी करवाई है कि रोज़ अलग अलग शकल नज़र आएगी तुम्हे? और मैं अपनी हठ पर अड़े रहती थी। सारा दिन फिर इसी टॉपिक पे चर्चा किया करते थे, और आख़िर में, तुम मुझसे तंग आकर, अजीब सी शकलें बनाकर, अपनी एक फोटो खींच कर भेज दिया करते थे। फिर शुरू होता था सिलसिला और बातों का, कभी ज़िंदगी से जुड़ते थे तो कभी दूरियों को कोसते छटपटाया करते थे।
देखो! आज हम कितने दूर हो गए है। ना केवल फ़ासलों में पर हमारी पागलों जैसी नटखट बातों में भी। इस सच्चाई से वाकिफ़ तो मैं पहले से ही थी। पर तुम तो जानते हो न, मुझे कुछ चीज़ों को स्वीकारने में वक़्त लग जाता है।
ख़ैर! वो सब जाने दो, पर तुम्हे एक बात बताऊं? नाराज़ तो नहीं होगे मुझसे? आज मैं उन्हीं सेल्फीज़ को देख कर, तुम्हें अपने करीब महसूस करती हूं! इतना तो एहसास ज़िंदा रहता है कि तुम पर ना सही, पर इन तस्वीरों पर सिर्फ़ मेरा हक़ है। खींची भी तो तुमने मेरे लिए थी न! 
अफ़सोस है कि क़िस्मत की लकीरों में हमारा साथ नहीं, पर एक नादान सी इल्तिजा हमेशा करती हूँ अपने ख़ुदा से , कि मुझपर उनका इतना उपकार हो..कि सिर्फ़ एक बार, फ़क़त एक बार तुम्हारे गले लगकर, तुम्हें महसूस कर अपने क़रीब, कहना चाहती हूं.. तुमसे जो राब्ता है वो किसी और से नहीं..खिंचाव नहीं.. बे-इंतिहा मोहब्बत है तुमसे.. 

#राब्ता #मोहब्बत #नादान_इश्क़ #yqbaba #yqdidi  #drg_diaries #drgstories
Photo credits : ava7.com
अफ़सोस है कि क़िस्मत की 
लकीरों में हमारा साथ नहीं, पर 
एक नादान सी इल्तिजा हमेशा 
करती हूँ अपने ख़ुदा से, कि मुझपर 
उनका इतना उपकार हो..कि सिर्फ़ 
एक बार, फ़क़त एक बार तुम्हारे गले 
लगकर, तुम्हें महसूस कर अपने क़रीब, 
कहना चाहती हूं.. तुमसे जो राब्ता है 
वो किसी और से नहीं..खिंचाव नहीं.. 
बे-इंतिहा मोहब्बत है तुमसे.. 

(कैप्शन में पढ़े) याद है तुम्हें? मैं हमेशा ज़िद्द किया करती थी कि मुझे तुम्हें देखना है। जहाँ भी हो, जैसे भी हो,अपनी सेल्फी भेजो, कहा करती थी न! और तुम हो कि बड़े नखरे किया करते थे!! कहते थे, शकल तो वही है ना! प्लास्टिक सर्जरी थोड़ी करवाई है कि रोज़ अलग अलग शकल नज़र आएगी तुम्हे? और मैं अपनी हठ पर अड़े रहती थी। सारा दिन फिर इसी टॉपिक पे चर्चा किया करते थे, और आख़िर में, तुम मुझसे तंग आकर, अजीब सी शकलें बनाकर, अपनी एक फोटो खींच कर भेज दिया करते थे। फिर शुरू होता था सिलसिला और बातों का, कभी ज़िंदगी से जुड़ते थे तो कभी दूरियों को कोसते छटपटाया करते थे।
देखो! आज हम कितने दूर हो गए है। ना केवल फ़ासलों में पर हमारी पागलों जैसी नटखट बातों में भी। इस सच्चाई से वाकिफ़ तो मैं पहले से ही थी। पर तुम तो जानते हो न, मुझे कुछ चीज़ों को स्वीकारने में वक़्त लग जाता है।
ख़ैर! वो सब जाने दो, पर तुम्हे एक बात बताऊं? नाराज़ तो नहीं होगे मुझसे? आज मैं उन्हीं सेल्फीज़ को देख कर, तुम्हें अपने करीब महसूस करती हूं! इतना तो एहसास ज़िंदा रहता है कि तुम पर ना सही, पर इन तस्वीरों पर सिर्फ़ मेरा हक़ है। खींची भी तो तुमने मेरे लिए थी न! 
अफ़सोस है कि क़िस्मत की लकीरों में हमारा साथ नहीं, पर एक नादान सी इल्तिजा हमेशा करती हूँ अपने ख़ुदा से , कि मुझपर उनका इतना उपकार हो..कि सिर्फ़ एक बार, फ़क़त एक बार तुम्हारे गले लगकर, तुम्हें महसूस कर अपने क़रीब, कहना चाहती हूं.. तुमसे जो राब्ता है वो किसी और से नहीं..खिंचाव नहीं.. बे-इंतिहा मोहब्बत है तुमसे.. 

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