लबों की ख़ामोशी ग़म-ए-दिल ज़ार ज़ार करती हैं, क्यूँ इतनी मोहब्बत है ये सवाल बार बार करती हैं। कहना है कई बातें फ़िर भी दिल को संभाले हुए हैं, लबों की ख़ामोशी पल पल दिल पे वार करती हैं। लबों की ख़ामोशी तोड़ इज़हार-ए-इश्क़ अब कर दो, है गर इश्क़ तो फ़िर क्यूँ ये मानने से इन्कार करती हैं। सब जानते हुए भी लबों को ख़ामोश कर चुप बैठे हैं, क्यूँ छुप के ये आँखें महबूब का यूँ दीदार करती हैं। ख़ामोश लबों को चाहत है उनकी क़ुर्बत की फिर भी, वक़्त के साथ उनकी पहल का इन्तज़ार करती हैं। ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1015 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।